सिवान | बरदाहा गांव | विशेष रिपोर्ट
बिहार के सिवान जिले के बरदाहा गांव में एक मां अपनी ढाई साल की नन्ही सी बेटी को बचाने के लिए दर–दर भटक रही है। दुर्गावती देवी की इकलौती बेटी सुशीला कुमारी जन्म से ही गंभीर लीवर बीमारी से जूझ रही है। परिवार महीनों से अस्पतालों के चक्कर काट रहा है, पर इलाज का रास्ता अभी भी बंद है। मां की आंखों से आंसू रुक नहीं रहे—और डॉक्टरों का कहना है कि अब बच्ची की जान बचाने का एक ही रास्ता है—लीवर ट्रांसप्लांट।
बचपन से लीवर खराब, हर जगह इलाज कराया पर फायदा नहीं
परिवार के अनुसार सुशीला कुमारी को जन्म के बाद से ही लीवर से जुड़ी गंभीर समस्या है।
दुर्गावती देवी बेटी को लेकर कई अस्पतालों में गईं—गांव, जिला, महानगर—जहां भी उम्मीद मिली, वे वहां दौड़ीं।
लेकिन कहीं भी राहत नहीं मिली।
लखनऊ के डॉक्टर ने कहा—‘लीवर बदलना पड़ेगा’, 20 लाख का खर्च
आखिरी उम्मीद के तौर पर बच्ची को लखनऊ ले जाया गया, जहां विशेषज्ञ डॉक्टरों ने जांच के बाद साफ कहा—
“बच्ची के लिवर में गंभीर समस्या है… उसे बचाना है तो लीवर ट्रांसप्लांट कराना ही पड़ेगा।
लीवर माता या पिता में से किसी एक को देना होगा और पूरा खर्च लगभग 20 लाख रुपये आएगा।”
यह सुनते ही मां दुर्गावती देवी का रो-रोकर बुरा हाल हो गया।
गरीब परिवार 20 लाख कैसे जुटाए? मां बोली—‘हमने सब कुछ बेच दिया, अब क्या करें?’
दुर्गावती देवी और उनके पति सत्येंद्र गोस्वामी मजदूरी और छोटे-मोटे काम करके घर चलाते हैं।
इलाज पर पहले ही तमाम जमा पूंजी और उधार खर्च हो चुका है।
मां का कहना है—
“मेरी बच्ची की जान बस आप लोगों की मदद पर टिकी है… हम गरीब लोग 20 लाख कहां से लाएंगे?
मेरी इकलौती बेटी है… उसे खो नहीं सकती।”
मां की चीख: ‘मेरी खबर पढ़ने–सुनने वाला कोई भी मेरी मदद करे’
दुर्गावती देवी हर किसी से गुहार लगा रही हैं।
उन्होंने भावुक अपील करते हुए कहा—
“जो कोई मेरी ये खबर पढ़ रहा हो, सुन रहा हो या देख रहा हो…
मेरी बेटी को बचा लो।
उस पर कोई अपराध नहीं… वह बस ढाई साल की है।
मैं हाथ जोड़कर सब से मदद मांगती हूं।”
गांव के लोग भी परिवार की हालत से बेहद दुखी हैं और अपने स्तर पर छोटे–मोटे प्रयास कर रहे हैं, लेकिन इतनी बड़ी राशि जुटाना लगभग असंभव है।
‘नई जिंदगी चाहिए इस नन्ही जान को’: सहायता ही आखिरी उम्मीद
सुशीला कुमारी की हालत समय के साथ और गंभीर होती जा रही है।
लीवर ट्रांसप्लांट जितनी जल्दी होगा, बच्ची के बचने की संभावना उतनी बढ़ेगी।
परिवार की नजर अब सिर्फ समाज, सरकार और मददगार लोगों पर टिकी है—
शायद कोई मदद का हाथ आगे बढ़े और इस नन्ही जान को नई जिंदगी मिल जाए।
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