मंदसौर: मंदसौर के गांधी सागर अभ्यारण्य में दुर्लभ प्रजाति का “स्याहगोश’’ (कैराकल) पाया गया है। गांधी सागर वन्य-जीव अभ्यारण्य में “कैराकल’’ जिसे स्थानीय रूप से “स्याहगोश’’ कहा जाता है कैमरा ट्रैप में दिखाई दिया। यह मांसाहारी प्रजाति का अत्यंत शर्मीला, तेज गति से दौड़ने वाला और सामान्यत: रात्रिचर वन्य-जीव है। यह मुख्यत: शुष्क, झाड़ीदार, पथरीले और खुली घास वाले इलाकों में पाया जाता है। भारत में अब यह प्रजाति विलुप्तप्राय श्रेणी में रखी गयी है और इसकी उपस्थिति बहुत ही दुर्लभ मानी जाती है।
कैराकल है जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण
गांधी सागर अभ्यारण्य के वन अधिकारी ने बताया कि वन मण्डल मंदसौर में लगाये गये कैमरा ट्रैप में एक वयस्क नर कैराकल की उपस्थिति दर्ज हुई है जो जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। अभ्यारण्य में संरक्षित आवासों की गुणवत्ता और संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण भी है। कैराकल की उपस्थिति यह दर्शाती है कि गांधी सागर क्षेत्र के शुष्क और अर्द्ध-शुष्क पारिस्थितिकीय तंत्र अब भी इतने समृद्ध और संतुलित हैं जो इस दुर्लभ प्रजाति को आश्रय दे सकते हैं।
20 वर्ष के बाद दिखा कैराकल
लगभग 20 वर्षों में राज्य में इस प्रजाति का यह पहला जानवर है। जानकारी के अनुसारर, 1 जुलाई, 2025 को तीन अलग-अलग मौकों पर 02:35 बजे, 22:05 बजे और फिर 23:38 से 23:39 बजे के बीच इस जानवर की तस्वीरें ली गईं। 2023 में मध्य प्रदेश वन विभाग ने ग्वालियर क्षेत्र में कैराकल को फिर से बसाने की योजना की रूपरेखा तैयार की थी, यह स्वीकार करते हुए कि यह प्रजाति लगभग दो दशकों से राज्य में आधिकारिक तौर पर नहीं देखी गई थी।
कैराकल का देखा जाना प्रदेश के लिये गर्व की बात
बता दें कि मध्य प्रदेश में पिछले कई वर्षों बाद किसी संरक्षित क्षेत्र में कैराकल की पुष्टि हुई है जो प्रदेश के लिये गर्व की बात है। यह खोज न केवल वन्य-जीव शोध के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है, बल्कि हमारे संरक्षण प्रयासों की सफलता का भी प्रमाण है। इस उपलब्धि के लिये वन विभाग एवं गांधी सागर वन्य-जीव अभ्यारण्य के अधिकारी-कर्मचारियों के विशेष प्रयासों से विविध पारिस्थितिकी संरक्षित रह पायी है जिससे आज यह अभ्यारण्य दुर्लभ प्रजातियों के लिये भी एक सुरक्षित आश्रय-स्थली बना हुआ है।