रामानुज ने लगाया गंभीर आरोप — कहा, मेरे पिता की जाली वसीयत बनाकर नायब तहसीलदार ने मोटी रकम लेकर नामांतरण कर दिया — हैंडराइटिंग एक्सपर्ट ने भी बताया दस्तखत फर्ज़ी, फिर भी आदेश जारी — न्याय की गुहार अब मानवाधिकार आयोग में
रिपोर्ट: विशेष संवाददाता, दैनिक भास्कर | प्रयागराज
प्रयागराज ज़िले में एक फर्ज़ी वसीयत के सहारे ज़मीन हड़पने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है।
गाँव दुड़ियार, तहसील मेजा निवासी रामानुज पुत्र रामसुमेर ने नायब तहसीलदार राजेन्द्र सिंह (लालतारा) पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्होंने 45 बीघा भूमि के नामांतरण के बदले रिश्वत ली और उनके दिवंगत पिता के नाम से फर्ज़ी, अपंजीकृत वसीयत तैयार करवा दी।
रामानुज ने आरोप लगाया —
“मेरे पिता की मौत के बाद, मेरे परिवार की ज़मीन को हड़पने की साज़िश रची गई। नायब तहसीलदार ने बिना नोटिस और बिना समन के, एक नकली वसीयत को असली मानकर नामांतरण कर दिया। उस वसीयत में मेरे पिता के दस्तख़त फर्ज़ी निकले — हैंडराइटिंग एक्सपर्ट की रिपोर्ट भी यही कहती है।”
मामले की पृष्ठभूमि
पूरा विवाद उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 34 से जुड़ा है।
शुरुआत में यह प्रकरण तहसीलदार कोरांव के न्यायालय में लंबित था। बाद में अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व), प्रयागराज के आदेश दिनांक 08.12.2022 के तहत यह फाइल तहसीलदार मेजा के पास स्थानांतरित की गई, और वहाँ से नायब तहसीलदार लालतारा को भेज दी गई।
नायब तहसीलदार राजेन्द्र सिंह के न्यायालय में 21 दिसंबर 2023 को सुनवाई हुई —
वादी (गुलाब देवी) हाज़िर हुईं, जबकि आपत्तिकर्ता रामानुज गैरहाज़िर थे।
इसके बाद 30 दिसंबर 2023 को बिना विपक्षी पक्ष को सुने, एकपक्षीय नामांतरण आदेश पारित कर दिया गया।
फर्ज़ी वसीयत की कहानी
विवादित वसीयत के मुताबिक, दिवंगत रामसुमेर यादव ने अपने जीवनकाल में कथित रूप से अपनी “सेविका” गुलाब देवी पत्नी रामभवन के पक्ष में पूरी 45 बीघा ज़मीन व मकान वसीयत कर दिए थे।
वसीयत में यह भी लिखा गया है कि —
“मेरे पुत्र रामानुज और अन्य संतानें मेरे खिलाफ हैं, मेरी देखभाल सिर्फ़ गुलाब देवी करती हैं, इसलिए मरने के बाद वही मेरी सम्पत्ति की वारिस होंगी।”
वसीयत में हस्ताक्षर और भाषा दोनों संदिग्ध हैं।
रिपोर्ट्स के अनुसार, लिखावट में एक से अधिक व्यक्तियों का हस्तक्षेप पाया गया और कई जगहों पर असंगतियाँ हैं — जिसे हैंडराइटिंग एक्सपर्ट ने फर्ज़ी बताया।
पुनःस्थापन याचिका और कोर्ट का रुख
रामानुज ने 04 मार्च 2024 को न्यायालय में पुनःस्थापन प्रार्थना पत्र दाखिल किया।
सुनवाई के दौरान, 24 अप्रैल 2025 को दोनों पक्ष उपस्थित हुए —
रामानुज की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने बहस में कहा कि “30 दिसंबर 2023 का आदेश एकपक्षीय और अन्यायपूर्ण है।”
न्यायालय ने न्यायहित में आदेश का क्रियान्वयन और प्रभाव अंतिम निस्तारण तक स्थगित कर दिया।
इसका अर्थ यह हुआ कि फिलहाल फर्ज़ी वसीयत के आधार पर किया गया नामांतरण अमान्य माना गया है।
मानवाधिकार आयोग ने लिया संज्ञान
शिकायतकर्ता रामानुज ने इस मामले को उत्तर प्रदेश मानवाधिकार आयोग तक पहुँचाया।
केस नंबर 5915/24/4/2025 में आयोग ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला अधिकारी प्रयागराज से रिपोर्ट तलब की।
आयोग के आदेश (दिनांक 27 मार्च 2025) में कहा गया —
“जिलाधिकारी प्रयागराज शिकायतकर्ता को सम्मिलित करते हुए विस्तृत जाँच कर 01 मई 2025 तक रिपोर्ट आयोग को भेजें।”
बाद में आयोग ने आदेश दिनांक 02 मई 2025 को जारी करते हुए कहा कि —
“आवेदक रामानुज को नायब तहसीलदार की जाँच रिपोर्ट की प्रति भेजी जाए, ताकि वह अपनी आपत्ति या साक्ष्य आयोग को 14 जुलाई 2025 तक डाक द्वारा भेज सकें।”
शासनादेश और कानून की ढाल
राजस्व विभाग ने यह कहते हुए आरोपों को खारिज किया है कि —
शिकायतकर्ता ने कोई ठोस प्रमाण नहीं दिए कि नायब तहसीलदार ने रिश्वत ली।
मामला न्यायिक आदेश से जुड़ा है, अतः “न्यायिक अधिकारी संरक्षण अधिनियम, 1850” के तहत अधिकारी पर कोई व्यक्तिगत कार्यवाही नहीं की जा सकती।
न्यायालय में पुनःस्थापन वाद लंबित है, अतः आगे की कार्यवाही न्यायिक प्रक्रिया से ही संभव है।
—
