मानकापुर
“अगर सच बोला तो केस में फंसा दूँगा”, ये शब्द आज भी योगिता के कानों में गूंजते हैं। सरकारी वकील के सामने सच्चाई रखने की हिम्मत दिखाई तो धमकियां मिलने लगीं। लेकिन अब योगिता ने चुप्पी तोड़ दी है। वह कहती हैं, “मैं अब और नहीं डर सकती।”
यह मामला सिर्फ एक पारिवारिक गलतफहमी का परिणाम नहीं है, बल्कि यह कानूनी प्रणाली की उस त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया को भी उजागर करता है जिसमें एक निर्दोष व्यक्ति को बिना गलती के सजा भुगतनी पड़ती है।
गलती मेरी थी, सजा उन्हें क्यों?
योगिता ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया है कि उन्होंने अपने पति पर लगाए गए आरोपों में अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन अब जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ है, तो वे अपने पति की रिहाई की मांग कर रही हैं। उनका कहना है, “मैं अपने पति से माफी मांग चुकी हूं। मेरी एक गलती की इतनी बड़ी सजा उन्हें नहीं मिलनी चाहिए।”
वे आगे कहती हैं, “मुझे धमकाया गया कि अगर मैंने सच बोला, तो मुझ पर झूठा केस कर दिया जाएगा। मेरी बेटी को भी गुमराह किया गया। लेकिन अब मैं चुप नहीं रह सकती। मैं अपने परिवार को टूटने से बचाना चाहती हूं।”
सिस्टम की खामियां भी उजागर
यह मामला न केवल एक पारिवारिक गलती का परिणाम है, बल्कि यह भी दिखाता है कि हमारे कानूनी सिस्टम में एक बार गलती हो जाने पर निर्दोष व्यक्ति को किस हद तक भुगतना पड़ता है। योगिता का साहस ऐसे समय में एक मिसाल है, जब बहुत से लोग डर और दबाव के कारण चुप रह जाते हैं।
पति की रिहाई की अपील
योगिता ने जिला प्रशासन और न्यायालय से अपील की है कि उनके पति को जल्द से जल्द रिहा किया जाए, क्योंकि वे निर्दोष हैं। उन्होंने कहा, “मैं मानकापुर में फिर से अपने पति के साथ जीवन बिताना चाहती हूं। मैं अब अपने परिवार को एकजुट करना चाहती हूं।”
एक नई उम्मीद की किरण
इस पूरे मामले में योगिता की स्वीकारोक्ति और उनका आगे आकर सच बोलना समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है कि डर और धमकियों के बावजूद सच की राह कभी बंद नहीं होती। यह एक मिसाल है कि धमकियों के बीच भी हौसला कायम रह सकता है।