गांव केंद्रित होकर बनाई गई कुछ योजनाओं ने पिछले 10 वर्षों में एक स्थिर बदलाव की जमीन तैयार की है। पिछले कुछ वर्षों में विशेषकर पंजाब और हरियाणा के किसानों ने कुछ धरना-प्रदर्शन जरूर किए और राजनीतिक बयानबाजी भी होती रही लेकिन आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि किसानी अब लाभप्रद होने लगी है। काश कृषि कानून परवान चढ़ पाते तो बदलाव की गति और तेज होती।
किसानों की दशा में सुधार के प्रयास
जो भी हो, केंद्र सरकार ने कृषि एवं किसानों की दशा में सुधार के प्रयास किए तो सीमित हो चुकी उर्वर जमीन से भी पैदावार में उछाल आने लगा। चावल, गेहूं, गन्ना एवं मोटे अनाजों के उत्पादन ने वर्षवार कीर्तिमान बनाए। दलहन में कदम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने लगे। कृषि क्षेत्र में उत्तरोत्तर सुधार का नतीजा है कि आजादी के बाद के किसी एक दशक में पैदावार में सबसे तीव्र वृद्धि हुई।
सिर्फ पांच वर्षों में 309 लाख टन ज्यादा खाद्यान्न का उत्पादन हुआ। इससे किसानों की आय का ग्राफ तेजी से बढ़ने लगा। व्यावसायिक कृषि के रूप में गन्ने की खेती ने समृद्धि के द्वार खोले। चीनी के अलावा अब बिजली एवं एथेनाल उत्पादन से किसानों की जेब में ज्यादा पैसे आने लगे हैं।
सरकार ने 10 वर्षों में गन्ने के मूल्य में प्रति क्विंटल 110 रुपये की वृद्धि कर देश के पांच करोड़ गन्ना किसानों एवं चीनी मिलों के कामगारों के सपनों को नई उड़ान दी है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के नए अध्ययन में यह स्पष्ट दिखने लगा है कि अब ग्रामीण क्षेत्रों में खाने की बजाय फ्रिज, टीवी जैसे उत्पादों पर खर्च बढ़ा है। ग्रामीण क्षेत्रों में जीवनस्तर में बदलाव दिखने लगा है।
भूमि-संपत्ति विवाद
पहले जमीन की कोई पहचान नहीं थी। जमीन का रिकार्ड सुधारना इसलिए जरूरी था, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के एक चौथाई एवं सिविल कोर्ट के 66 प्रतिशत केस भूमि-संपत्ति विवाद से जुड़े हैं। इसलिए 96 प्रतिशत ग्रामीण भूमि का कंप्यूटरीकरण करके आमजन को विवादों से बचाने का प्रयास किया गया। पहले कागजात के लिए दफ्तरों का चक्कर लगाना पड़ता था।
अब जमीन से जुड़े सारे कागजात घर बैठे अपलोड किए जा सकते हैं। डिजिटाइजेशन के बाद बैंकों से लोन भी आसानी से मिलने लगा है। इससे ग्रामीण जीवन आसान हुआ है। पीएम आवास योजना के तहत तीन करोड़ 32 लाख गरीबों के घर बनाए गए। दो करोड़ दीदियों को लखपति बनाना कम परिवर्तनकारी नहीं है। लक्ष्य पूरा होने की स्थिति में है।
बिचौलिया प्रथा खत्म
दस वर्षों के पारदर्शी प्रयासों का परिणाम है कि बिचौलिए वाली प्रथा खत्म हो गई। अब दिल्ली से चला प्रत्येक रुपया पूरा का पूरा किसानों के बैंक खाते में सीधे पहुंच जाता है। न कोई रुकावट, न कोई दलाली। किसान सम्मान निधि ने तो साहूकारों के संजाल को ही समाप्त कर दिया है। प्रत्येक तीन महीने में पूंजी के रूप में खाते में दो हजार रुपये आ जाते हैं। बाढ़-सूखे से त्रस्त किसानों के लिए फसल बीमा योजना ढाल की तरह है। फसल की बर्बादी के बावजूद नुकसान शून्य।
किसानों को फसल बेचने के लिए व्यापारियों के पास नहीं जाना पड़ता है। वह अपनी उपज को बिना परेशानी के उचित मूल्य पर कृषि मंडियों में बेच सकता है। किसानों की सुविधा के लिए ई-नाम से 2016 में आनलाइन नेटवर्क की शुरुआत हुई थी। अब पौने दो करोड़ से ज्यादा किसान इससे जुड़ चुके हैं। कृषि उत्पादों के परिवहन को आसान करने के लिए किसान रेल भी चलने लगी हैं।