(बुलंदशहर रोड इंडस्ट्रियल एरिया से विशेष रिपोर्ट)
मुखर्जी पार्क के पास, सी-175 इंडस्ट्री एरिया की धूल और पसीने के बीच एक शख्स अपने सुरों से जिंदगी को नया अर्थ देने की कोशिश कर रहा है। नाम है रामजीवन मंडल — उम्र 45 वर्ष, मूल निवासी मुंगेर (बिहार)। कभी ट्रक चलाकर देशभर की सड़कों पर सफर करने वाले रामजीवन अब दिल्ली की फैक्ट्रियों और निर्माण स्थलों पर मजदूरी करते हैं, पर दिल में गूंजते हैं केवल गाने।
तीन महीने से बुलंदशहर रोड पर कर रहे मजदूरी
पिछले तीन महीनों से रामजीवन सी-175, बुलंदशहर रोड इंडस्ट्री एरिया, मुखर्जी पार्क के पास मजदूरी कर रहे हैं। ईंट, बालू और सीमेंट के बीच भी उनके सुरों की लय नहीं टूटी है। काम के बाद रात में वे मोबाइल पर गाने सुनते हैं, अभ्यास करते हैं, और अपने खुद के गीत गुनगुनाते हैं।
पत्नी फरीदाबाद में, दिल अब भी मुंगेर में अटका
रामजीवन की पत्नी नीलम इस समय फरीदाबाद में अपने दोनों बच्चों — 12 साल के जयवीर और छोटी बेटी साधना — के साथ रहती हैं।
रामजीवन बताते हैं, “नीलम मुझसे नाराज़ है क्योंकि मैं घर पर नहीं रह पाता था। ट्रक ड्राइविंग का काम मुझे दूर-दूर ले जाता था। लेकिन अब मैं मेहनत कर रहा हूं, गाने गा रहा हूं… शायद किसी दिन मेरा नाम होगा, और मेरा परिवार वापस आएगा।”
‘हर भाषा में गा लेता हूं’ — रामजीवन की खासियत
रामजीवन मंडल का आत्मविश्वास देखने लायक है। वे हिंदी, भोजपुरी, मैथिली और पंजाबी तक में गाने गा लेते हैं। कहते हैं, “राइटर जैसा भी गाना देता है, मैं वैसा ही गा लेता हूं। बस एक मौका चाहिए।”
गांव-गांव के आयोजनों में उनकी आवाज़ सुनने वाले लोग कहते हैं — “रामजीवन की आवाज़ में दर्द है, लेकिन वही दर्द उन्हें खास बनाता है।”
‘शायद संगीत ही मेरा परिवार लौटाए’
अपनी टूटी हुई जिंदगी को सुरों से जोड़ने की कोशिश में जुटे रामजीवन कहते हैं —
“मुझे यकीन है, जब मेरा गाना रेडियो या टीवी पर बजेगा, तो मेरी पत्नी और बच्चे जरूर सुनेंगे। और शायद वो दिन मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन होगा।”
सपनों की राह अभी लंबी है, पर हौसला पक्का
बुलंदशहर रोड की फैक्ट्री की दीवारों के बीच गूंजते रामजीवन के गीत इस बात का सबूत हैं कि प्रतिभा और जुनून के आगे हालात टिक नहीं सकते।
मजदूरी करते-करते भी वो अपनी आवाज़ से जिंदगी को उम्मीदों के सुर में बदल रहे हैं।


