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“सरकारी आदेश के बावजूद नहीं मिली नौकरी — बेरोजगार रसोइया बोला, अब आत्महत्या ही आखिरी रास्ता!”

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लखनऊ | विशेष रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक गरीब रसोइए की गुहार ने पूरे प्रशासनिक तंत्र को हिला कर रख दिया है। तीन वर्ष तक मेरठ पुलिस विभाग में भोजन बनाने का कार्य करने वाले इस रसोइए को एक दुर्घटना में पैर टूट जाने के बाद नौकरी से निकाल दिया गया।

प्रार्थी का कहना है कि उच्चाधिकारियों से आदेश मिलने के बावजूद उसे दोबारा काम पर नहीं रखा जा रहा है। इतना ही नहीं, जब वह अपने पुनर्नियोजन के आदेश की कॉपी लेकर संबंधित कार्यालय पहुँचा तो उसे यह कहकर भगा दिया गया —

“ऐसे आदेश रोज आते हैं, सरकार तो रोज बदलती रहती है, हम किस-किस को रखें!”

तीन साल सेवा के बाद बेरोजगारी की मार

पीड़ित रसोइए ने बताया कि उसने मेरठ पुलिस लाइन में तीन वर्षों तक ईमानदारी से भोजन तैयार किया, लेकिन एक्सीडेंट के बाद जब वह कुछ महीने आराम पर रहा तो अधिकारियों ने उसे हटा दिया। अब उसकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि वह भूखों मरने की स्थिति में पहुँच गया है।

“मैंने मुख्यमंत्री पोर्टल और कई उच्च अधिकारियों को पत्र भेजे, पर कोई सुनवाई नहीं हुई,” — प्रार्थी का आरोप।
“अवैध धन की मांग और धमकी”

पीड़ित ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ लोगों द्वारा उससे पुनः नौकरी लगाने के लिए अवैध धन की मांग की जा रही है। जब उसने देने से इनकार किया, तो उसे फर्जी रिपोर्ट लगाने और मारपीट की धमकी तक दी गई।

“कहा गया कि अगर पैसा नहीं दिया तो तेरी रिपोर्ट हमेशा गलत ही जाएगी,” — प्रार्थी ने बताया।

CBCID जांच की मांग

रसोइए ने अब शासन से गुहार लगाई है कि पूरे मामले की CBCID या SOG क्राइम ब्रांच से निष्पक्ष जांच कराई जाए।
उसका कहना है कि 2021 से लेकर 2025 तक की सभी जांचें प्रभावित की गई हैं और अब न्याय तभी मिलेगा जब उच्च स्तर पर जांच होगी।

“न्याय न मिला तो आत्महत्या करूंगा”

प्रार्थी ने पत्र में लिखा है कि यदि अब भी सरकार या प्रशासन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, तो वह आत्महत्या करने को मजबूर होगा, जिसकी पूरी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।

क्या बोले अधिकारी?

इस मामले में स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क करने पर कोई आधिकारिक बयान प्राप्त नहीं हो सका। हालांकि सूत्रों का कहना है कि प्रकरण की पुनः समीक्षा कराए जाने की संभावना जताई जा रही है।
जनता की आवाज़:
यह घटना न केवल एक व्यक्ति की व्यथा है, बल्कि यह उस सिस्टम पर सवाल उठाती है जहाँ सरकारी आदेश भी जमीनी स्तर पर मज़ाक बन चुके हैं। क्या अब सरकार इस पीड़ित रसोइए को न्याय दिला पाएगी?

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