Home National हरियाणा में मजदूरी कर रहे सुपौल के मजदूर एमडी तमन्ना की पुकार...

हरियाणा में मजदूरी कर रहे सुपौल के मजदूर एमडी तमन्ना की पुकार — “हमारी मेहनत की कोई कीमत नहीं, हमारी आवाज कोई नहीं सुनता”

0

हरियाणा में मजदूरी कर रहे बिहार के सुपौल जिले के निवासी एमडी तमन्ना ने मीडिया के सामने अपना दर्द और संघर्ष बयां किया है। उन्होंने कहा कि प्रवासी मजदूरों की न तो कोई सुनवाई होती है, न कोई सहारा।

“ना कोई हमारा हाल जानता है, ना कोई हमारी सुनता है। नेट पर भी हमारी आवाज नहीं पहुँचती,” — एमडी तमन्ना

वे बताते हैं कि उनकी मासिक आमदनी मात्र 15 से 20 हजार रुपये है, जिससे परिवार चलाना दिन-ब-दिन कठिन होता जा रहा है। “इतने पैसों में बहनों-बेटियों की शादी तो दूर, घर का खर्च और इलाज तक नहीं हो पाता। सरकारें हमारी तरफ देखती तक नहीं,” उन्होंने कहा।

एमडी तमन्ना ने बताया कि बिहार से हरियाणा और अन्य राज्यों में रोज़ी-रोटी की तलाश में आने वाले मजदूरों को न तो रहने की सुविधा मिलती है, न सरकारी मदद। बच्चे पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हैं और परिवार कर्ज़ में डूबे हुए हैं।

छह पलकें खोलते ही परदेस की दास्तान — बिहार के प्रवासी मजदूरों की आवाज

हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और अन्य राज्यों में काम करने वाले बिहार के सैकड़ों प्रवासी मजदूर अपने परिवारों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के लिए हर दिन जद्दोजहद कर रहे हैं। वे कहते हैं —

“हम भी बिहार के बेटे हैं, हमारे बच्चों को भी पढ़ने का हक मिलना चाहिए।”

इन मजदूरों की प्रमुख मांग है कि राज्य सरकार गरीब प्रवासी परिवारों के बच्चों के लिए विशेष शिक्षा योजना शुरू करे।
उनका सुझाव है कि हर प्रखंड या जिले से 10–20 गरीब बच्चों को चयनित कर सरकारी कॉलेजों में निशुल्क दाखिला दिया जाए ताकि उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सके।

प्रवासी मजदूरों की प्रमुख समस्याएँ

आर्थिक तंगी — कम आय, बढ़ते खर्च और कर्ज़ का बोझ।

शिक्षा का संकट — कई बच्चे मजबूरी में पढ़ाई छोड़ देते हैं।

तनाव और अकेलापन — परिवार से दूर रहना, मानसिक दबाव।

शराब की लत में फंसना — कई मजदूर तनाव कम करने के लिए शराब की ओर भागते हैं।

एक प्रवासी मजदूर ने भावुक होकर कहा —

“हम कोई अमीर नहीं हैं, दुख में पीते हैं, खुशी में नहीं। सरकार से बस इतनी गुहार है कि हमारे बच्चों को पढ़ने का मौका दें।”

सरकार से प्रमुख मांगें

1. ‘गरीब प्रवासी परिवार छात्रवृत्ति योजना’ शुरू की जाए।

2. प्रखंड या पंचायत स्तर पर चयन प्रक्रिया के ज़रिए 10–20 गरीब बच्चों को मुफ्त कॉलेज में दाखिला मिले।

3. प्रवासी मजदूरों का डेटा बैंक बनाया जाए ताकि योजनाएँ सीधे लाभार्थियों तक पहुँचें।

विश्लेषण

बिहार जैसे राज्यों में रोजगार की कमी ने लाखों लोगों को पलायन के लिए मजबूर किया है। लेकिन इन प्रवासी परिवारों के बच्चों की शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करना सरकार की सामाजिक जिम्मेदारी है। अगर उन्हें मुफ्त कॉलेज शिक्षा और छात्रवृत्ति मिले, तो ये बच्चे भविष्य में अपने परिवार की दिशा और दशा बदल सकते हैं।

अंतिम अपील

यह खबर सिर्फ एक आवाज़ नहीं, बल्कि उन हजारों परिवारों की व्यथा है जो हर दिन मेहनत करके भी सम्मानजनक जीवन नहीं जी पा रहे।
प्रशासन, समाज और मीडिया — तीनों को मिलकर इन बच्चों के भविष्य की राह आसान करनी होगी।

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version