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भारत और चीन के ईवी बाजार: बीवाईडी की सफलता और भारत की चुनौतियाँ

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नई दिल्ली, 13 मार्च 2025: चीन की अग्रणी इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) कंपनी बीवाईडी ने 2024 में 4 मिलियन ईवी बेचकर दुनिया भर में तहलका मचा दिया है, जो टेस्ला की बिक्री से दोगुनी है। बीवाईडी की इस सफलता की कहानी, जो वॉरेन बफेट के 2008 में 232 मिलियन डॉलर के निवेश और चीनी सरकार के 2009-2022 के बीच 29 बिलियन डॉलर के निवेश से संचालित हुई, ने वैश्विक ईवी उद्योग में एक नया अध्याय लिखा है। बीवाईडी ने अपनी “ब्लेड बैटरी” तकनीक के साथ, जो सस्ती, सुरक्षित और तेज चार्जिंग वाली है, टेस्ला, फोर्ड और टोयोटा जैसे दिग्गजों को अपनी बैटरी आपूर्ति के लिए मजबूर किया है। चीन ने ईंधन चालित वाहनों को छोड़कर ईवी पर ध्यान केंद्रित किया, खनिज संसाधनों जैसे ग्रेफाइट, कोबाल्ट और लिथियम पर नियंत्रण स्थापित किया, और नीतियों के माध्यम से त्वरित पैमाने पर उत्पादन को बढ़ावा दिया, जिससे बीवाईडी दुनिया की सबसे बड़ी ईवी कंपनी बन गई।

लेकिन भारत के लिए यह सवाल उठता है: क्या भारत चीन की तरह ईवी क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है? भारत का ईवी उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय ईवी बाजार 2022 में 3.21 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2029 तक 113.99 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है, जिसमें 66.52% की वार्षिक वृद्धि दर होगी। सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ पहल और फेम-आईआई (फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) जैसी नीतियों के माध्यम से ईवी को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं, जिसमें चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और कर छूट शामिल हैं। इसके अलावा, 2030 तक भारत 80 मिलियन ईवी सड़कों पर लाने का लक्ष्य रखता है, जो तेल आयात में कमी और प्रदूषण नियंत्रण में मदद करेगा।

हालांकि, चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 650 चार्जिंग स्टेशन हैं, जो ईवी अपनाने में एक बड़ी बाधा है। चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी और उच्च प्रारंभिक लागत के कारण उपभोक्ताओं के लिए ईवी अभी भी आकर्षक नहीं हैं। बीएमडब्ल्यू इंडिया और टोयोटा जैसे कंपनियों ने भी भारतीय बाजार में ईवी और हाइब्रिड वाहनों के उत्पादन में देरी की बात कही है, क्योंकि चार्जिंग नेटवर्क की अनिश्चितता और लागत प्रभावित कर रही है। इसके अलावा, भारत को बैटरी तकनीक और कच्चे माल जैसे लिथियम और कोबाल्ट के लिए चीन पर निर्भरता कम करनी होगी, जो बीवाईडी की सफलता का आधार रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को चीन की तरह बड़े पैमाने पर सरकारी निवेश, स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा, और नवाचार पर ध्यान देना होगा। बीवाईडी की तरह, भारत को भी सस्ती और सुरक्षित बैटरी तकनीक विकसित करनी होगी, साथ ही चार्जिंग नेटवर्क का तेजी से विस्तार करना होगा। हालांकि, गुणवत्ता और दीर्घकालिक स्थिरता पर ध्यान देना होगा, क्योंकि भारतीय उपभोक्ता सस्ते विकल्पों के बजाय विश्वसनीयता चाहते हैं।

बीवाईडी की सफलता से प्रेरणा लेते हुए, भारत को अपनी नीतियों में और सुधार करने की जरूरत है, ताकि ईवी क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके और वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाई जा सके। लेकिन यह तभी संभव होगा, जब सरकार, उद्योग और उपभोक्ता मिलकर इस परिवर्तनकारी यात्रा में योगदान दें।

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