दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे सोडा बॉर्डर प्लॉट नंबर 57 में रहने वाली 32 वर्षीय सोनी ने अपने पति मनोज सिंह पर भावनात्मक शोषण, धोखा, आर्थिक दोहन और मानसिक उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए हैं। यह मामला सिर्फ एक वैवाहिक झगड़ा नहीं, बल्कि एक महिला की अस्मिता, संघर्ष और उपेक्षा की गवाही है।
बचपन से ही संघर्षों में घिरी जिंदगी
शिकायतकर्ता सोनी ने बताया कि उसकी शादी बचपन में ही उसके जीजा से कर दी गई थी, लेकिन जब वह 22 साल की हुई, तो उसने वह रिश्ता स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इसके बाद मनोज सिंह से उसकी मुलाकात हुई और दोनों ने थाने की जानकारी में विवाह किया।
मनोज सिंह की पहली पत्नी भी उस वक्त थाने में मौजूद थी, यानी सब कुछ पारदर्शी और स्पष्ट रूप से हुआ था।
10 साल का साथ और विश्वासघात
सोनी ने मनोज के साथ 10 वर्षों तक वैवाहिक जीवन व्यतीत किया। वह बताती है कि:
“मैंने अपने पति को सब कुछ माना, उसे पत्नी की तरह अपनाया, साथ निभाया। जब वह कुछ नहीं कर रहा था, तब मैं दिल्ली में मजदूरी करके उसे चलाती रही। मैंने उसे मोबाइल फोन दिए, खर्चे उठाए, खाना बनाया और हमेशा उसके साथ रही।”
लेकिन अब वही मनोज सिंह कहता है:
“मैं अब अपनी पहली पत्नी और बच्चों के साथ रहूंगा, तेरे साथ नहीं।”
एकतरफा समझदारी और टूटा रिश्ता
सोनी कहती है कि उसने मनोज को सिर्फ एक पति ही नहीं, बल्कि अपने जीवन का सहारा माना। उसने अपनी मेहनत से न केवल रिश्ता निभाया बल्कि घर का हर खर्च उठाया।
“अब जब वो मुझे छोड़कर जा रहा है, तो मैं कहाँ जाऊं? मेरा क्या कसूर है?” — पीड़िता की आंखें भर आईं।
धमकियों से दबी आवाज़
मनोज सिंह केवल इनकार करके नहीं रुका, बल्कि उसने सोनी को धमकी दी कि:
“अगर मेरी पहली पत्नी थाने में मुकदमा कर देगी तो तुझे कौन बचाएगा? तेरा तो कोई नहीं है, मुझे तो कोई छुड़ा ही देगा।”
यह साफ तौर पर एक महिला को डराने, मानसिक रूप से तोड़ने और सामाजिक रूप से अलग-थलग करने की साजिश मानी जा सकती है।
सोनी की भावनात्मक अपील:
पीड़िता ने कहा:
“मैं अब भी यही चाहती हूँ कि मनोज सिंह मेरे साथ रहे। मैं नहीं चाहती कि उसे कोई सजा या नुकसान हो, लेकिन मैं अकेली नहीं जी सकती। मैंने अपना जीवन उसे सौंप दिया, अब वह मुंह मोड़ रहा है।”
सोनी की मांगें:
1. मनोज सिंह को उसके साथ वैवाहिक रूप से रहने के लिए कानूनी रूप से बाध्य किया जाए।
2. उसे पुलिस सुरक्षा, महिला आयोग की सहायता और सामाजिक सहयोग प्रदान किया जाए।
3. उसके द्वारा दिए गए आर्थिक सहयोग (जैसे मोबाइल, पैसे) की जांच हो और जवाबदेही तय की जाए।
4. प्रशासन और समाज मिलकर समझौते और सम्मानजनक समाधान का रास्ता निकालें।