Wednesday, November 6, 2024
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
HomeNationalदोबारा सुलगी पुरानी पेंशन की चिंगारी, सरकारी कर्मियों को मंजूर नहीं UPS,...

दोबारा सुलगी पुरानी पेंशन की चिंगारी, सरकारी कर्मियों को मंजूर नहीं UPS, 17 नवंबर को दिल्ली में होगी बड़ी

एनपीएस में सुधार कर लाई गई ‘यूनिफाइड पेंशन स्कीम’ (यूपीएस) से केंद्र सरकारी के कर्मचारी संतुष्ट नहीं हैं। अभी तक यूपीएस का गजट भी जारी नहीं हुआ है, लेकिन कर्मचारी संगठनों ने विरोध का बिगुल बजा दिया है। ‘नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंजीत सिंह पटेल ने बताया, 17 नवंबर को नई दिल्ली में ओपीएस बहाली के लिए पेंशन जयघोष महारैली आयोजित की जाएगी। रैली की तैयारियों के मद्देनजर, पटेल ने कई राज्यों का दौरा किया है। उनका दावा है कि जंतर मंतर पर होने वाली रैली में केंद्र एवं विभिन्न प्रदेशों की सरकारों के कर्मचारी शिरकत करेंगे। पटेल ने बताया, हमारा फोकस नाम पर नहीं है, बल्कि ओपीएस की आत्मा पर है। सरकार से मांग है कि पेंशन की गणना 25 वर्ष के स्थान पर 20 वर्ष हो और कर्मचारी के अंशदान पर जीपीएफ की मान्यता रहे, ताकि वह कर्मचारी को पूरा वापस मिल जाए।

इस विरोध प्रदर्शन की कड़ी में सबसे पहले ‘एनएमओपीएस’ द्वारा 26 सितंबर को देश के सभी जिला मुख्यालयों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया था। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के सदस्यों ने दो अक्तूबर को प्रतिज्ञा ली है कि जब तक वे गैर-अंशदायी ‘पुरानी पेंशन’ योजना हासिल नहीं कर लेते, तब तक चैन से नहीं बैठेंगे। रेलवे के विभिन्न कर्मचारी संगठन भी यूपीएस के विरोध में खड़े हो गए हैं। एआईडीईएफ के महासचिव सी. श्रीकुमार का कहना था, कर्मचारियों ने यूपीएस के खिलाफ अपने आंदोलन को दोबारा से प्रारंभ करने का निर्णय लिया है। अंशदायी पेंशन योजना, ‘यूपीएस’ का पुरजोर विरोध किया जाएगा। पिछले 20 वर्षों से केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी, अंशदायी पेंशन योजना के खिलाफ लड़ रहे हैं।
उनकी मांग, गैर-अंशदायी पुरानी पेंशन योजना को फिर से बहाल कराना है। सरकारी कर्मचारियों के पास अब यही विकल्प बचा है कि वे यूपीएस में शामिल हों या एनपीएस में बने रहें।
बतौर श्रीकुमार, यूपीएस कुछ नहीं है, बल्कि एनपीएस का विस्तार है। राज्य सरकार के कर्मचारी संगठनों ने भी यूपीएस को खारिज कर दिया है। कई राज्यों में रैलियां और विरोध कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। वे यूपीएस को स्वीकार नहीं कर सकते। वजह, यह एक अंशदायी प्रकृति की योजना है। कर्मचारियों की संचित निधि, जिसमें उन्होंने 3 दशकों से अधिक समय तक योगदान दिया है, उसे वापस नहीं लौटाया जाएगा। भले ही पेंशन की पात्रता 25 साल रखी गई है, लेकिन कर्मचारियों को पेंशन 60 साल की उम्र के बाद ही मिलेगी। पुरानी पेंशन योजना में मिलने वाले कई लाभ एनपीएस/यूपीएस में नहीं मिलते हैं। इससे कर्मियों को आर्थिक नुक़सान हुआ है।

गांधी जयंती दिवस पर एआईडीईएफ के प्रत्येक सदस्य ने शपथ ली है कि वे, एक रक्षा नागरिक कर्मचारी, विनाशकारी एनपीएस और यूपीएस अंशदायी पेंशन योजना से मुक्त होने के लिए सभी संघर्षों और आंदोलनों में शामिल होने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वे सीसीएस (पेंशन) नियम, 1972 (अब 2021) के तहत गैर अंशदायी पेंशन प्राप्त करने के लिए सभी ट्रेड यूनियन एक्शन कार्यक्रमों का समर्थन करते हैं और उनमें भाग लेंगे। कर्मचारियों ने प्रतिज्ञा की है कि वे जब तक गैर-अंशदायी पुरानी पेंशन योजना हासिल नहीं कर लेते, तब तक चैन से नहीं बैठेंगे। सभी सरकारी कर्मचारियों की इस वास्तविक और उचित मांग को वास्तविकता में बदलने के लिए वे सब एक हैं। इस बाबत दूसरे कर्मचारी संगठनों से भी चर्चा हो रही है।

नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत के अध्यक्ष मंजीत सिंह पटेल ने बताया, 20 वर्ष की नौकरी के बाद 50 प्रतिशत पेंशन का आधार सुनिश्चित हो, कर्मचारी अंशदान की ब्याज सहित यानी जीपीएफ की तरह वापसी और वीआरएस/अनिवार्य सेवानिवृत्ति/सेवानिवृत्ति पर संपूर्ण राशि की वापसी, सरकार को ये मांगें माननी ही पड़ेंगी। 17 नवंबर की रैली में देशभर से लाखों कर्मचारी भाग लेंगे। इनमें दिल्ली, जम्मू कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात, असम, मेघालय, नागालैंड, सिक्किम, तमिलनाडु, चंडीगढ़ और महाराष्ट्र सहित अन्य प्रदेशों के अलावा केंद्रीय कर्मचारियों के संगठन भी शामिल हैं।

पटेल ने कहा, हमने पहले भी रणनीतिक रूप से सरकार को कदम दर कदम, एनपीएस पर झुकाया है। केंद्र सरकार को एनपीएस पर पीछे हटना पड़ा है। अब पुरानी पेंशन के मामले में कर्मचारियों की दो महत्वपूर्ण डिमांड बची हैं। पहली है पेंशन की गणना 25 वर्ष के स्थान पर 20 वर्ष हो और दूसरी, कर्मचारी के अंशदान पर जीपीएफ की मान्यता रहे, ताकि वह कर्मियों पूरा वापस मिल जाए। ये दोनों मुद्दे, इस बार 17 नवंबर की रैली के बाद हल हो जाएंगे। पेंशन तो हम हुबहू पुरानी ही लेकर रहेंगे। बस उसका नाम ओपीएस नहीं होगा। बतौर पटेल, नाम तो पहले भी ओपीएस नहीं था। नाम कुछ भी हो सकता है, हमारा फोकस नाम पर नहीं है, बल्कि ओपीएस की आत्मा पर है। कर्मचारियों का सरकार के लिए सुझाव है, नाम चाहे कुछ भी रख लो, लेकिन उन्हें ओपीएस के सभी प्रावधानों का फायदा दे।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments